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भारतीय समाज में विवाह पूर्व यौन -सम्बन्ध को उचित नहीं माना जाता है . सभी धर्मों में इसका विरोध किया गया है और इसे पाप की संज्ञा दी गयी है .
आज के आधुनिक युग में विवाह पूर्व यौन-सम्बन्ध को ज्यादातर युवा एक आम बात मानते है , उनके लिए यह सिर्फ एक मनोरंजन मात्र है, जिसका भावात्मकता से कोई सरोकार नहीं होता पर जब बात ऐसे जोड़े की हो जो एक-दूसरे से शादी करने वाले हो और विवाह पूर्व यौन-सम्बन्ध बनाने के बाद पुरुष शादी से मुकर जाए तो ऐसी स्थिति में महिला द्वारा पुरुष पर बालात्कार का आरोप लगाना सर्वथा गलत है. दिल्ली कि एक अदालत ने इस मामले को बालात्कार कि श्रेणी में अपराध मानने से साफ़ इंकार कर दिया .
कोर्ट के अनुसार , कोई भी धर्म शादी पूर्व शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं देता। ऐसे में अगर कॉरपोरेट ऑफिस में काम करने वाली, स्व-विवेक से अपना हर फैसला लेने वाली महिला किसी पुरुष से सिर्फ इसलिए यौन संबंध बनाने को राजी हो जाती है कि वह उससे शादी करेगा तो यह उसकी स्वयं की जिम्मेदारी होगी क्योंकि परिपक्वता के साथ काम करती हुई वह महिला स्वयं समझदार होती है और ऐसे हर कृत्य को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
कोर्ट का यह फैसला बिल्कुल सही है क्योंकि जब स्त्री पुरुष समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त कर रही है तो फिर स्त्री को भावात्मक रूप से भी अपने आपको मजबूत बनाना ही होगा . स्त्रीयों को यदि स्वभावतः भावुक कहा जाता है तो इसके साथ ही उनमें विवेकशीलता की भी प्रचुरता होती है , उन्हें अपने विवेक को अपना सुरक्षा कवच बनाना चाहिए , जिससे उन्हें उचित – अनुचित का स्वयं भान हो सके . किसी भी स्त्री को किसी पुरुष से शादी के वादे के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध कतई नहीं बनाना चाहिए , उन्हें विचार करना चाहिए की जो सम्बन्ध शादी के बाद सहज ही स्वीकार्य है उसके लिए पुरुष शादी पूर्व ही क्यों जोर दे रहा है , कहीं उनके रिश्ते का आधार सिर्फ शारीरिक आकर्षण तो नहीं . स्त्री का विवेक और उसकी भावात्मक मजबूती ही इस पुरुष सत्तात्मक समाज में नारी शोषण को रोक सकती है , किसी भी पुरुष को दोष देने की अपेक्षा स्वयं को मजबूत बनाना होगा , अब कमजोर और असहाय बनकर काम नहीं चलेगा बल्कि औरतो को अपनी भावात्मक कमजोरी पर काबू पाना ही होगा .
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