Menu
blogid : 15299 postid : 686025

गोरखपुर का खिचड़ी मेला -मकर संक्रांति स्पेशल

Lekhani
Lekhani
  • 62 Posts
  • 86 Comments

77063127706312

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। इस दिन नये चावल और उड़द के दाल की खिचड़ी खाई जाती है जिससे इस पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है l मकर संक्रांति पर्व पर गुड और तिल का भी सेवन किया जाता है l इस पर्व पर लोग दंगल का भी आयोजन करते हैं I हिन्दुओं के लिये शुभ कार्यों के शुभारंभ के लिये यह बहुत ही अच्छा समय माना जाता है। इस दिन दान कि भी विशेष महत्ता होती है I

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित विश्व प्रसिद्ध बाबा गुरू गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति में खिचड़ी मेला लगता है, जिसमें आस्था,उत्साह और मनोरंजन का समावेश होता है l यह पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक माह से भी ज्यादा समय तक चलने वाला सबसे बड़ा खिचड़ी मेला होता है l मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है। पडोसी देश नेपाल से भी लोग यहाँ आते हैं I अलग-अलग शहरों से लोग आकर यहाँ अपनी दुकाने लगाते हैं l इसमें ढेर सारे मनोरंजन के साधन, छोटे-बड़े झूले, चर्खी, मौत का कुआं, सौंदर्य प्रसाधन की दुकानें, फोटो गैलरी, घेरलू सामग्रियों, खाजा व चाय-पकौड़ों की भारी संख्या में दुकानें होती हैं l निशानेबाजी और मौत के कुआं जैसे हैरतअंगेज कारनामे भी इस मेले में दिखाई देंगे l

ऐसी मान्यता है कि गुरू गोरक्षनाथ जी एक बार हिमांचल के कांगड़ा नामक क्षेत्र में घूमते हुए जा रहे थे। ज्वाला देवी के धाम को देखते हुए वह उधर से गुजर रहे थे, तो गुरू गोरक्षनाथ जी को आया हुआ देखकर ज्वाला देवी प्रकट होती है और धाम में आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह करती हैं l वहां पर मद्य-मांस का भोग लगता था और गोरक्षनाथ जी योगी थे। लेकिन मां ज्वाला देवी के आग्रह को नकार नहीं सकते थे। उन्होंने मां से आग्रह किया कि मां मैं तो भिक्षा में जो कुछ प्राप्त होता है उसी का सेवन करता हूं। मां ज्वाला देवी ने गुरू गोरक्षनाथ जी से कहा आप भिक्षा मांगकर अन्न ले आइये मैं चूल्हा जलाकर जल गरम करती हूं। देवी ने पात्र में जल भर चूल्हे पर चढ़ा दिया, जो आज भी जल रहा है, लेकिन गोरक्षनाथ जी उस स्थान पर लौटकर नहीं पहुंचे। वे भ्रमण करते हुए यहां वर्तमान गोरखपुर आ पहुंचे। त्रेता युग में यह क्षेत्र वन से घिरा हुआ था। गोरक्षनाथ जी को वनाच्छादित यह क्षेत्र तप करने के लिये अच्छा लगा और वह यहाँ तप करने लगे। भक्तों ने गुरू गोरक्षनाथजी के लिये एक कुटिया बना दी। उन्होंने गोरक्षनाथ जी के चमत्कारी खप्पर (भिक्षा मांगने का पात्र) में खिचड़ी भरना प्रारंभ कर दिया। यह मकरसंक्रांति की तिथि थी। यह खप्पर आज तक भरा नहीं। तभी से प्रतिवर्ष गोरक्षनाथ मंदिर में खिचड़ी का महापर्व मनाया जाता है। उसी समय से गोरक्षनाथ मंदिर में खिच़ड़ी के अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता है। मकर संक्रांति की भोर में तीन बजे मुख्य मंदिर के पट खोल दिये जाते हैं। इसके बाद योगी आदित्यनाथ व मंदिर के अन्य पुजारियों द्वारा की गयी आरती व खिचड़ी चढ़ायी जाती है।तत्पश्चात् नेपाल के राजपरिवार कि खिचड़ी चढ़ाई जाती है जो कि रोट नामक एक विशेष प्रकार कि मिठाई होती है इसी के साथ श्रद्धालुओं द्वारा भी खिचड़ी चढ़ाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply