भारतीय महिला और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस(8 मार्च ) के सन्दर्भ में मेरे विचार
Lekhani
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत ८ मार्च १९७५ से हुई है , तब से हर वर्ष ८ मार्च को सम्पूर्ण विश्व में महिला दिवस मनाया जाता है पर आज इस ब्लॉग में मैं अपने भारत देश की महिलाओं की बात कर रही हूँ क्योंकि वो कहते हैं न कि , “किसी भी सुधार की शुरुआत अपने घर से करनी चाहिए” इसलिए भारत में महिला दिवस और महिला सशक्तिकरण पर मैं अपने विचार व्यक्त कर रही हूँ l
भारतीय महिला का सबसे प्रचलित रूप है,माँ-बहन,पत्नी,बहू-बेटी जिसके लिये परिवार की प्राथमिकता पहले है जो पारिवारिक जरूरतों के लिए घर से बाहर भी निकलती है लेकिन तब भी उसकी सोच स्वयं के लिए न होकर बल्कि सम्पूर्ण परिवार के लिए होती है l
भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है, इसके बावजूद वर्तमान में भारतीय महिलायें हर उस क्षेत्र में आगे आई हैं जिसमें कभी सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व रहा है l एक तरह से देखा जाय तो शायद यही महिला सशक्तिकरण है क्योंकि महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य महिलाओं की प्रगति है परन्तु क्या वास्तव में यही महिला सशक्तिकरण है ?
सुबह स्कूल के लिए घर से निकलती छोटी बच्ची हो या कॉलेज जाती बालिग लड़की या फिर ऑफिस जाती कोई महिला हो या घरेलु कामवाली कोई भी आज सुरक्षित नहीं है – क्या यही महिला सशक्तिकरण है ? महिलाओं ने हर क्षेत्र में पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रगति की है किन्तु पुरुष वर्चस्व वाला हमारा समाज हर पल इस आत्मविश्वास को कुचलने को आतुर है , आये दिन महिलाओं के शोषण की खबरें मीडिया के माध्यम से सामने आती है l औरतों को आज घर-बाहर हर जगह अपने अस्मत की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है फिर यह महिला दिवस मनाने का ढोंग क्यों ?
अगर सिर्फ आज के दिन की बात की जाय तो क्या आज के दिन ८ मार्च को देश का कोई भी नेता ,समाजसुधारक या फिर कोई सामान्य नागरिक इस बात की गारंटी ले सकता है कि महिला दिवस को सड़क चलती किसी भी लड़की को अपमानित नहीं होना पडेगा या ऑफिस में , घरों में , खेतों में किसी भी महिला को आज के दिन यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पडेगा l यदि इसे सम्भव बनाया जा सके तभीमहिला दिवस मनाने का औचित्य है l
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