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“मेरी माँ”

Lekhani
Lekhani
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चल पड़ी आज मेरी लेखनी

यादों के भंडार में

और मिल गई उसको “मेरी माँ”

जो छिपी थी मेरे एहसास  में ,


नहीं था आभास मुझको इस एहसास का

जब माँ का आँचल था पास में

बचपन बिता दादी की गोद में

याद न आई उसकी

जन्म लिया जिसकी कोख में ,


उड़ चला यौवन भाई-बहन ,

सखी-सहेलियों के संग- संग

न जाना न समझा

क्या होता है ममता का रंग ,


संस्कारों की ओढ़नी ओढ़ कर

जब मैं  ब्याही गई

महसूस किया तेरी कमी को माँ

जब मैं पराई हुई ,


माँ तेरे व्यक्तित्व का ही

समावेश है मेरे अस्तित्व में

तूने जिस कच्ची मिट्टी को

नाजुक सा आकार दिया

जिम्मेदारियों ने उसको

अब बना दिया है सख्त,


दूर होकर भी माँ

तू हर पल पास है मेरे

तेरी आवाज का संबल ही मुश्किलों में

देता है मुझको बल ,


आँखें ही नहीं

तेरी याद में माँ

आज मेरी लेखनी भी

हो गई  है नम.


http://vandanasinghvas.blogspot.in/2015/05/blog-post_8.html

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